विद्यारंभ शुभ मुहूर्त 2021 का महत्व

हिन्दू धर्म में विद्यारंभ संस्कार बेहद महत्वपूर्ण व्यवस्था मानी गई है। विद्यारंभ संस्कार धार्मिक, आध्यात्मिक और सांसारिक ज्ञान को प्राप्त करने का पहला चरण है। यह संस्कार बच्चे के अंदर अच्छे गुणों को विकसित करने के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि वह बड़ा होकर अपनी ज़िम्मेदारी का पालन ईमानदारी से कर सके। जिस तरह हर काम को करने का एक सही समय होता है, वैसे ही विद्यारंभ करने के लिए भी शुभ मुहूर्त और सही उम्र का होना बेहद आवश्यक है।


पुराने समय में लोग अपने बच्चों का विद्यारंभ संस्कार पांच साल की उम्र तक करवाते थे, लेकिन आजकल लोग बच्चे के 3-4 साल की उम्र तक पहुंचते ही शिक्षा देना शुरु कर देते हैं। हालांकि उम्र चाहे जो भी हो लेकिन सही मुहूर्त पर विद्यारंभ संस्कार करा देने से बच्चे का भविष्य सुनहरा हो जाता है और उसे शिक्षा के क्षेत्र में कोई परेशानी नहीं आती। साथ ही इससे बच्चों को विवेक की प्राप्ति होती है और वो जीवन में आने वाली हर बाधा को आसानी से पार कर लेता है।


विद्यारंभ मुहूर्त 2021 की गणना और संपन्न करने का समय

शास्त्रों के अनुसार विद्यारंभ संस्कार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व रखता है।इसीलिए माता-पिता बच्चे की जन्मकुंडली को किसी अच्छे ज्योतिष या पंडित से दिखाकर ही विद्यारंभ संस्कार का मुहूर्त निकलवाते हैं। ज्योतिष बच्चे की कुंडली के साथ-साथ तिथि, नक्षत्र, राशि और वार आदि जैसे आवश्यक पहलुओं को भी ध्यान में रखकर विद्यारंभ मुहूर्त निकालते हैं। चलिए जानते हैं विद्यारंभ संस्कार के लिए कौन-कौन से वार, तिथि, नक्षत्र और राशि माने जाते हैं।


शुभ वार

सोमवार, गुरुवार, शुक्रवार और रविवार


शुभ नक्षत्र

रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, अश्विनी, मृगशिरा, उत्तराषाढ़ा, चित्रा, स्वाति, अभिजीत, धनिष्ठा, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और शतभिषा, हस्त, मूल, रेवती और पूर्वाषाढ़ा


शुभ राशि

वृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या, और धनु लग्न


शुभ तिथि

माघ शुक्ल की सप्तमी, फाल्गुन शुक्ल की तृतीया और चैत्र-वैशाख की शुक्ल तृतीया


विद्यारंभ मुहूर्त 2021निकालते समय तिथियों, राशियों और वारों के चुनाव में विशेष सावधानी बरतें। ऊपर हमने आपको बताया कि विद्यारंभ संस्कार कब करना शुभ होता है। इसके साथ ही आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि यह संस्कार कब-कब नहीं किया जाना चाहिए। चतुर्दशी, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी तिथि और सूर्य संक्रांति के दिन इस संस्कार को करना अशुभ माना जाता है। इसके साथ ही पौष, माघ, फाल्गुन मे आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भी विद्यारंभ संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही चंद्र दोष और तारा दोष के समय भी इस संस्कार को करना वर्जित होता है।


विद्यारंभ मुहूर्त 2021: विद्यारंभ संस्कार की विधि

आज हम अपने इस लेख के जरिए आपको विद्यारंभ संस्कार को करने की सही विधि और साथ ही कुछ ध्यान रखने योग्य बातें बताएंगे।


विद्यारंभ संस्कार को करने से पहले बालक या बालिका को स्नान करवाकर साफ कपड़े पहनाने चाहिये। माता पिता को भी स्नान-ध्यान करके नये या साफ वस्त्र पहनने चाहिए।

संस्कार शुरु करने के लिए सबसे पहले गणेश वंदना कर नीचे बताये मंत्र का जाप किया जाना चाहिए।

इसके बाद माता सरस्वती का ध्यान करके नीचे बताये मंत्र के उच्चारण सहित पूजा प्रारंभ करें।

सरस्वती पूजा के बाद गुरु पूजा की जाती है। यदि कोई गुरु उपस्थित नहीं हो, तो नारियल को गुरु का प्रतीक मानकर नारियल की पूजा करनी चाहिए।

इसके बाद शिक्षा प्राप्ति के लिए आवश्यक चीजें जैसे कलम, दवात, पट्टी आदि की भी विधि पूर्वक पूजा कर लें।

शिक्षा में उपयोग होने वाले इन उपकरणों को वेद मंत्रों की मदद से अभिमंत्रित करना आवश्यक होता है ताकि इनके प्रारंभिक प्रभाव से बच्चे को मंगलकारी प्रभाव मिल सके।

विद्यारंभ मुहूर्त 2021: संस्कार के दौरान की जाने वाली विशेष पूजा

विद्यारंभ संस्कार के दौरान विधिवत भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की जाती है। इसके साथ ही शिक्षा में प्रयोग होने वाली लेखनी, पट्टी और सबसे महत्वपूर्ण गुरु जो हमें शिक्षा देते हैं और अच्छे-बुरे में फर्क समझाते हैं, उनकी भी पूजा करना अनिवार्य होता है।


चलिए जानते हैं विद्यारंभ संस्कार 2021 के दौरान की जाने वाली पूजा के बारे में विस्तार से-


गणेश पूजा

भगवान शिव के पुत्र लम्बोदर यानि गणेश जी को हिंदू धर्म में बुद्धि का देवता और प्रथम पूज्य माना जाता है, इसलिए जब भी किसी भी नए या शुभ काम की शुरुआत होती है, तो सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। विद्यारंभ संस्कार के दौरान गणेश पूजा में सबसे पहले बच्चे के हाथ में अक्षत, रोली और फूल देकर नीचे बताए गए मंत्र को पढ़ते हुए गणपति के चित्र के सामने अर्पित करा दें। माता पिता को भगवान गणेश की पूजा करते समययह प्रार्थना करना चाहिए कि भगवान गणेश उनके बच्चे को तेज बुद्धि और उज्जवल भविष्य प्रदान करें। ताकि बच्चा अपनी जिंदगी में हर काम बुद्धि-विवेक से करें और जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की पाए।


ॐ गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम।

आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

सरस्वती पूजा

विद्यारंभ संस्कार के दौरान गणेश पूजा के बाद विद्या की देवी कही जाने वाली माता सरस्वती की पूजा की जाती है। माता सरस्वती की पूजा करते समय नीचे बताये मंत्रों का जाप अवश्य करनी चाहिये।


ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसुः।

ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

पट्टी पूजा

विद्यारंभ संस्कार करते समय पट्टी पूजन का भी विधान है। पुराने जमाने में पट्टी की पूजा की जाती थी, लेकिन आज के समय में लोग इसकी जगह काॅपी का प्रयोग करते हैं। पट्टी पूजा करते समय नीचे बताए मन्त्रों का उच्चारण करते हुए बच्चे से पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजा की सामग्री अर्पित कराएं।


ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पतनी सुकृतं बिभर्ति।

अपारसेन वरुणो न साम्नेन्द्र, श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥

लेखनी पूजा

लेखनी मतलब जिससे लिखा जाता है और वो होता है पेन या पेंसील। विद्यारंभ संस्कार के दौरान लेखनी पूजन करते समय बच्चे के हाथ में लेखनी दे और पूजा में सम्मिलित माता-पिता की मदद से बच्चे से कॉपी पर नीचे बताये मंत्र को श्रद्धापूवर्क पढ़ते हुए कुछ लिखवाएं।


ॐ पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दुः अन्तमर्हिमानमानंजधीरः।

एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम्, अष्टापदीं भ्ाुवनानु प्रथन्ता स्वाहा।

गुरु पूजा

जब भी हम शिक्षा की बात करते हैं, तो शिक्षक का नाम आना लाज़मी हैं। एक व्यक्ति को अच्छे-बुरे, सही-गलत आदि की समझ मुख्य रूप से एक शिक्षक ही करवाता है, इसीलिए शिक्षक की भूमिका विद्यारंभ संस्कार में भी अहम् होती है, और इस संस्कार को करने के दौरान नीचे बताये गए मंत्र के साथ गुरु की भी पूजा की जाती है। पूजा को संपन्न करते समय गुरु बच्चे से कापी या पट्टी पर उसके जीवन का पहला अक्षर या फिर गायत्री मंत्र लिखवाते हैं। विद्यारंभ संस्कार करते समय गुरु को पूर्व दिशा और बच्चे को पश्चिम दिशा की ओर अपना मुख करके बैठना चाहिए। यदि पूजा के दौरान गुरु मौजूद न हो तो माता पिता संस्कार स्वयं ही कर सकते हैं।


ॐ बृहस्पते अति यदयोर्ऽ, अहार्द्द्युमद्विभाति क्रतुमज्ज्ानेषु, यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।

उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिबृर्हस्पतये त्वा॥ ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

विशेष आहुति

विद्यारंभ संस्कार के अंतिम भाग में हवन करते हैं, जिसके अंतर्गत हवन की सामग्री में कोई मिठाई मिला लें। अब नीचे बताये मंत्र का पांच बार उच्चारण करते हुए बच्चे से पांच आहुतियां हवन कुंड में डलवाएं। हवन के समय मन में यह भावना ज़रूर रखें कि यज्ञ से आ रही ऊर्जा से बच्चे में अच्छे संस्कार आए।